1

यह सुख भी असह्य हो जाएगा
यह पूरे संसार का
जैसे एक फूल में सिमटकर
हाथ में आ जाना
यह एक तिनके का उड़ना
घोंसले का सपना बनकर
आकाश में

यह अँधेरे में
हाथ का हाथ में आकर
बरजना, झिझ्कना और
छूट जाना

यह एक रोशन-सी जगह का कौंधना
और खो जाना
एक दिन
यह सुख भी असह्य हो जाएगा।

2

मैं सब कुछ वैसे ही रखूँगा—
मेज़ पर पुस्तकें,
देर बाद लगने वाली प्यास के लिए
एक गिलास में थोड़ा-सा पानी,
अपनी दुखती दाईं एड़ी को
दबाने के लिए उस पर अपना हाथ।

शरद के आकाश में एक अर्द्धचन्द्र,
अँधेरे के वृक्ष पर फूलों और फूलों की तरह
कुछ जुगनू और कुछ नक्षत्र
और अपने अथाह मौन की रोशनी में
कुछ अँधेरे शब्द।

तुम्हारे हाथ के झिझकते स्पर्श से
तपते हुए
मैं अपने संसार में
सब कुछ वैसे ही रखूँगा
सिर्फ़ वह हाथ
जहाँ भी रखा जाएगा,
वहाँ तुम्हारे हाथ की आँच की ही सरहद होगी।

3

उसके हाथ की गुनगुनी धूप
उसके हाथ का झिझकता अँधेरा

उसके हाथ फूलों की तरह
ओस-भीगे और शान्त
उसके हाथ पक्षियों की तरह
भाग जाने को विकल

उसके हाथ अकेले
उसके हाथ डूबे हुए स्वप्न में
उसके हाथ
करते हैं प्रतीक्षा
हाथों की।

अशोक वाजपेयी की कविता 'प्यार करते हुए सूर्य-स्मरण'

Book by Ashok Vajpeyi:

अशोक वाजपेयी
अशोक वाजपेयी समकालीन हिंदी साहित्य के एक प्रमुख साहित्यकार हैं। सामाजिक जीवन में व्यावसायिक तौर पर वाजपेयी जी भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक पूर्वाधिकारी है, परंतु वह एक कवि के रूप में ज़्यादा जाने जाते हैं। उनकी विभिन्न कविताओं के लिए सन् १९९४ में उन्हें भारत सरकार द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया। वाजपेयी महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के उपकुलपति भी रह चुके हैं। इन्होंने भोपाल में भारत भवन की स्थापना में भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।