हरिशंकर परसाई के उद्धरण | Harishankar Parsai Quotes
‘आवारा भीड़ के ख़तरे’ से
“समाज का कसमसाना प्रगति का लक्षण है, परिवर्तन का लक्षण है। जो समाज कसमसाता नहीं, वह जड़ रह जाता है।”
‘पवित्रता का दौरा’ से
“पवित्रता की भावना से भरा लेखक उस मोर जैसा होता है जिसके पाँव में घुँघरू बाँध दिए गए हों!”
“हम मानसिक रूप से ‘दोगले’ नहीं, ‘तिगले’ हैं। संस्कारों से सामन्तवादी हैं, जीवन मूल्य अर्द्ध-पूँजीवादी हैं और बातें समाजवाद की करते हैं।”
“जिस समाज के लोग शर्म की बात पर हँसें और ताली पीटें, उसमें क्या कभी कोई क्रांतिकारी हो सकता है?”
‘वह जो आदमी है न’ से
“निंदा में अगर उत्साह न दिखाओ तो करने वालों को जूता-सा लगता है।”
“वे (अंग्रेज़) देश को पश्चिमी सभ्यता के सलाद के साथ खाते थे। ये जनतंत्र के अचार के साथ खाते हैं।”
“एक स्त्री से उसकी मित्रता है। इससे वह आदमी बुरा और अनैतिक हो गया।”
‘एक मध्यमवर्गीय कुत्ता’ से
“आदमी की शक्ल में कुत्ते से नहीं डरता। उनसे निपट लेता हूँ। पर सच्चे कुत्ते से बहुत डरता हूँ।”
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