‘Hona Toh Yun Tha’, a poem by Rag Ranjan

होना तो यूँ था
कि मैं अपनी तमाम उदासियों को
तुम्हारे भूले हुए प्रेम गीतों की तरह गुनगुनाता
किसी सुनसान गोल सड़क पर
सीटी बजाता चलता चला जाता

(कहीं पहुँचने की आकाँक्षा
सफ़र के प्रति एक हिंसक क्रूरता है)

तब मैं
अपनी कल्पनाओं तक में निपट एकाकी होता
यथार्थ के आईने में भी ख़ुद से अलग
मेरी आवाज़ के घेरों के बाहर
ठहर जाती मेरी तमाम असुरक्षाएँ

मैं ख़ुद
अपने लिए परिपूर्ण होता
हर क्षण में निर्लिप्त भरपूर बसा हुआ

पर आह यह तनाव जैसे
कल्पना और यथार्थ के बीच की
कसी हुई कोई रस्सी, जिस पर
साँस रोके ख़ुद को सम्भालता हुआ मैं

इस खेल में स्वयं के हाथों
खेला जाता हुआ
कि जिसमें पहुँचना नहीं है कहीं

होना शायद यही है कि
या तो रस्सी लचक जाएगी
या मैं थक जाऊँगा आख़िरकार

एक दिन
गिर पड़ूँगा अपनी ही ज़मीन पर…

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