मैं सर्वोत्तम, तुम गौण न कह के
कुछ उनकी प्रशंसा कर सकते हैं।
हम इतना तो कर सकते हैं।

अगल-बगल मेरे सुरम्य सवेरा
उजाला उस कुटिया में भर सकते हैं।
हम इतना तो कर सकते हैं।

लगी मुझे तो होगी हिंसा
तो हम भी कुछ अहिंसक बन सकते हैं।
हम इतना तो कर सकते हैं।

उसको झूठा सदा हम कहते
खुद भी सत्य पर बढ़ सकते हैं।
हम इतना तो कर सकते हैं।

जिस दर्पण में दूजों को परखें
उसी रूप में खुद ढल सकते हैं।
हम इतना तो कर सकते हैं।