हम सब लौट रहे हैं
ख़ाली हाथ
भय और दुःख के साथ लौट रहे हैं
हमारे दिलो-दिमाग़ में
गहरे भाव हैं पराजय के
इत्मीनान से आते समय
अपने कमरे को भी नहीं देखा
बिस्तर के सिरहाने तुम्हारी
बड़ी आँखों वाली एक फ़ोटो पड़ी थी
बन्द अन्धेरे कमरे में अब भी टँगी होगी
रोटी के लिए फिरते हमारे जैसे लोग
थके और बेबस मन लौट रहे हैं
महीने का हिसाब अभी बक़ाया था
हम सब बिना मज़दूरी के लौट रहे हैं
हिम्मत अब टूट गई है
सर पर जो महाजनों का क़र्ज़ है
उसे बिना चुकाए घर लौटना
मरने जैसा है
हम सब मरे हुए लोग घर लौट रहे हैं
साथ के कुछ लोग भूखे पेट रास्ते में खप गए
एक आदमी का बच्चा रास्ते में मर गया रेल में
ग़रीब आदमी इसी तरह घर लौटता है!