हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे
लोग हमें देखते और औरों को नसीहत करते―
इनकी तरह मत होना,
हम में होने जैसा था ही क्या
सो, हम भी खुद की तरफ़ देखने वालों को
यही हिदायत देते―
हमारी तरह मत होना
और, वैसे भी
हमारी तरफ़ देखता ही कौन था
गली के आख़िरी मकान के दूसरे माले
की बालकनी पर गिटार बजाने वाली
इक उदास लड़की के सिवा।
हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे
परन्तु, हमें शहर ने
बड़ी ही सहजता से अपनाया
ऐसे जैसे कोई घर आए,
भूख लगे,
फ़्रिज खोले,
सब्ज़ियाँ काटे,
पकाए,
खाए,
टीवी में खो जाए;
ऐसे जैसे किसी को नींद आए,
बत्तियाँ बुझाए,
कम्बल खोले,
लेटे और सो जाए।
हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे
हमने तब शराब पी,
जब हमारे पास
पीने को बहुत कुछ था
जीने को कुछ नहीं
हम शब्द बने,
ऋतु बने,
रुचियाँ बने,
हम हर वो शय बने
जो हमें उपलब्ध न थी
हम वो अधर बने
जो अचूमे रहे
हम वो नयन बने
जो अझूमे रहे
ऐसा नहीं है कि
हम कुछ और नहीं कर सकते थे
कुछ और यानी―
किसी दो कौड़ी की परीक्षा में
आ सकते थे अव्वल,
या फिर, मान सकते थे अपने अब्बा की बात
खुश कर सकते थे सारी क़ायनात को एक साथ
भर सकते थे कोई दो कौड़ी का फॉर्म,
बदल सकते थे अपनी तक़दीर
परन्तु, हमने प्रेम करना चुना
एक ऐसी लड़की से
जिसे पता भी नहीं था
प्रेम कैसे किया जाता है।
ऐसा नहीं है कि हम कुछ और नहीं हो सकते थे
लेकिन, हमने सहर्ष बर्बाद होना चुना
हमने चुनाव का हमेशा सम्मान किया
इसलिए हमें इस बात का ज़रा भी मलाल नहीं है
कि हम अचुने रह गए
हम शहर के सबसे आवारा लड़के रहे
और हमने इस तमगे का कभी दिखावा नहीं किया
हम देर-सबेर घर आते रहे
चीखते-चिल्लाते रहे
हमने तब आवाज़ की,
जब चुप रहना
हर तरह से
फ़ायदे का सौदा बताया गया था
हम मुर्दों के बीच रहकर भी मरे नहीं
हमने शहर को मरघट बताया
और मरघट पर शहर बसाने का ख़्वाब सजाया
हमें जब भूख लगी
हमने शहर खाया,
हमें जब प्यास लगी
हमने शहर पीया
और जब हम अपच के शिकार हुए
तब हमने थोड़ा-सा शहर उगल दिया
जब बढ़ने लगा कोलाहल
शहर ने हम में पनाह ली
हमने अपने भीतर, बहुत भीतर
शहर को ज़िंदा रक्खा
हम शहर के सबसे आवारा लड़के थे
2019