‘Humare Beech’, a poem by Nirmal Gupt
हमारे तुम्हारे बीच
जब कोई सहमति नहीं थी
तब हमारे दरम्यान
बहती थी गीली हवा
देह को बड़ी एहतियात से छूती
हम निशब्दता में
किस क़दर बतियाते
अधर स्थिर रहते
और चुम्बन की गर्माहट
दिल में उतर आती
हमारे पास कितना कुछ था
अपनी ख़ामोशी में
लगातार सुनने-सुनाने को
मन के भीतर की निजता में
बजती थी जलतरंग
हम चहलक़दमी करते
पहुँच जाते क्षितिज तक
और तुम एड़ियों पर उचककर
अंजुरी में भर लेती थीं
इन्द्रधनुष के सारे रंग
तब हमारे पास फ़ुर्सत थी
लिपि से परे कविताएँ थीं
मस्त हवाओं के साथ
कामनाओं के जंगल में
नाचने का उतावलापन था
फिर हमने बना लिया
अपनी देहों के बीच रस्सी का पुल
देखते ही देखते बहने लगी
एक चिड़चिड़ी नदी
हमारे पैरों तले
सब्र और पुल का इम्तेहान लेती!
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