“इन स्मृतियों को सहेज लो,
एक दिन ये कहीं अधिक दीप्त होंगी”
इतना ही कहा था तुमने
और मुझे वक़्त की बेरहमी का अंदाज़ा हो गया
इसलिए जितना वक़्त मिल पा रहा है
मैं जादू करना चाहता हूँ
जादू ही देखना चाहता हूँ
दोनों तरफ़ जादू को एक ही तरह महसूस करना चाहता हूँ
मैं जानता हूँ—धीरे-धीरे बातें कम हो जाती हैं
हौले-हौले एक-दूसरे के लिए बहुत कुछ साधारण हो जाता है
सब कुछ उसी पटरी पर लौट आता है
कुछ भी बदलता नहीं,
फिर भी बहुत कुछ बदल जाता है
इसलिए
बहुत कुछ के बदल जाने से पहले
मैं बहुत कुछ असाधारण करना चाहता हूँ
यूँ तो कोई आग्रह नहीं रहेगा मेरा
फिर भी, यदि हो कभी और तुम निभा न सको, तो मेरे हृदय पर
अपनी ओर से इसे आघात न समझना
जिसके लिए शब्दों के मानी होते हैं
प्रगाढ़ होने तक ठहरता है, तब जाकर कुछ कहता है
तब तक तरल होकर अनुभूति में घुलते रहना होता है
एक दिल को तसल्ली भर चाहिए होती है
कि किसी ने कहा था कि वो मेरा अपना है
बस!
मैं अनुभूतियों पर टिका हुआ जिस्म हूँ
मेरे भीतर जाने कौन रहता है अस्त-व्यस्त
ऐसा लगता है—उसे प्रबन्धन की ज़रूरत है
तुम्हारा ही तो कहना है
कि बहुत बार हम इतने भरे होते हैं कि ख़ाली होने का भय
हमें उलीचने की सरलता से अधिक भयातुर रखता है।
इसी भय के आसंग बैठा रहा हूँ मैं एक सदी
अब उलीच रहा हूँ स्वयं को।
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