यदि इस बार सावन आया
यदि जमकर बादल बरसे
यदि रिमझिम-रिमझिम हो गयी
कोई भीगा मन तक आया
काग़ज़ की कश्तियों को
तुम्हारी और अपनी को
पानी में बहाएँगे
नौका में बैठकर हम
खोये हुए सपनों को
खोजकर ही लाएँगे
सीपियाँ और शंख चुनकर
भीगी-भीगी रेत पर
महल नित बनाएँगे
इस बार जो आये बादल
बादलों के साथ-साथ
उड़-उड़ ही जाएँगे
इस बार जीवित रहे तो
सतरंगी पेंग चढ़ा
झूलेंगे, झुलाएँगे
इस बार जो आये सावन
साजन के गले लगकर
रोएँगे, रुलाएँगे
इस बार जीवित रहे तो…