इस तरह ढक्कन लगाया रात ने
इस तरफ या उस तरफ कोई न झाँके।

बुझ गया सूर्य
बुझ गया चाँद, त्रस्त ओट लिये
गगन भागता है तारों की मोट लिये!

आगे-पीछे, ऊपर-नीचे
अग-जग में तुम हुए अकेले
छोड़ चली पहचान, पुष्पझर
रहे गंधवाही अलबेले।

ये प्रकाश के मरण-चिन्ह तारे
इनमें कितना यौवन है?
गिरि-कंदर पर, उजड़े घर पर
घूम रहे निःशंक मगन हैं।

घूम रही एकाकिनि वसुधा
जग पर एकाकी तम छाया
कलियाँ किन्तु निहाल हो उठीं
तू उनमें चुप-चुप भर आया

मुँह धो-धोकर दूब बुलाती
चरणों में छूना उकसाती
साँस मनोहर आती-जाती
मधु-संदेशे भर-भर लाती।

माखनलाल चतुर्वेदी
माखनलाल चतुर्वेदी (४ अप्रैल १८८९-३० जनवरी १९६८) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है।