कहाँ हैं वो!
जो अब भी कहते हैं कि
ईश्वर सब देख रहा है!
मैं पूछना चाहती हूँ
तुम्हारे ईश्वर ने कब-कब
क्या-क्या देखा?
उसे ख़ुद की स्तुतिगान और प्रशंसा सुनने से फ़ुर्सत नहीं
वो ऊब गया है सतयुग तक फ़रियादें सुन-सुनकर
अब दो तीन युग तक वो चिल करेगा!
तुम मुझे नास्तिक कहकर गालियाँ दे सकते हो
पर अपने ईश्वर को नहीं बुला सकते!
क्योंकि मैंने बचपन से गज ग्राह की कथा सुनी थी
मुझे विश्वास भी था कि ईश्वर आता है!
पर जब निर्भया चीख़ी थी तो
मन ने कहा कि उस पल ईश्वर कहाँ रहा होगा!?
ख़ैर अब तो नन्हें शिशु के साथ
कमसिन माँ-बाप भी चीख़े
पर ईश्वर नहीं आया!
जब नन्ही सी चिड़िया को
नोंचकर कुछ घिनौने राक्षस खातें हैं
तब मौत ने उन्हें मुक्त किया,
पर तुम्हारा ईश्वर नहीं आया!
जब युद्ध और दंगे में
लाशों के ढेर पर बलात्कार हुआ
तब भी तुम्हारा ईश्वर नहीं आया था!
जब सदियों से धर्म के नाम पर
मानवता को बार-बार कुचला गया
तब भी ईश्वर नहीं आया!
नादिरशाह और तैमूर की ख़ूनी तलवार
छीनने भी नहीं आया था!
जब दिल्ली चीख़ती रही
और दारा का सिर काटकर
चाँदनी चौक पर टाँग दिया गया
तब भी ईश्वर नहीं आया!
जब सोमनाथ मंदिर को लूटकर
बर्बरता से कत्लेआम हुआ
तब भी ईश्वर नहीं आया!
और मानवता की सबस क्रूर त्रासदी
हिरोशिमा और नागासाकी
जिसके घाव आज भी आने वाली नस्लें ढो रही हैं
ईश्वर तब भी नहीं आया था!
मैं कितना गिनाऊँ ऐसे ही अगनित बार
धरती काँप उठी अन्याय से
पर सब देखने वाला तुम्हारा
ईश्वर नहीं आया!