‘Isiliye Toh Nagar Nagar’, a poem by Gopaldas Neeraj
इसीलिए तो नगर-नगर बदनाम हो गए मेरे आँसू
मैं उनका हो गया कि जिनका कोई पहरेदार नहीं था।
जिनका दुःख लिखने की ख़ातिर
मिली न इतिहासों को स्याही,
क़ानूनों को नाख़ुश करके
मैंने उनकी भरी गवाही,
जले उमर-भर फिर भी जिनकी
अर्थी उठी अँधेरे में ही,
ख़ुशियों की नौकरी छोड़कर
मैं उनका बन गया सिपाही,
पदलोभी आलोचक कैसे करता दर्द पुरस्कृत मेरा
मैंने जो कुछ गाया उसमें करुणा थी शृंगार नहीं था,
मैं उनका हो गया कि जिनका…
मैंने चाहा नहीं कि कोई
आकर मेरा दर्द बँटाए,
बस यह ख़्वाहिश रही कि-
मेरी उमर ज़माने को लग जाए,
चमचम चूनर-चोली पर तो
लाखों ही थे लिखने वाले,
मेरी मगर ढिठाई मैंने
फटी कमीज़ों के गुन गाए,
इसका ही यह फल है शायद कल जब मैं निकला दुनिया में
तिल भर ठौर मुझे देने को मरघट तक तैयार नहीं था,
मैं उनका हो गया कि जिनका…
कोशिश भी कि किन्तु हो सका
मुझसे यह न कभी जीवन में,
इसका साथी बनूँ जेठ में
उससे प्यार करूँ सावन में,
जिसको भी अपनाया उसकी
याद संजोई मन में ऐसे,
कोई साँझ सुहागिन दीया
बाले ज्यों तुलसी पूजन में,
फिर भी मेरे स्वप्न मर गये अविवाहित केवल इस कारण
मेरे पास सिर्फ़ कुंकुम था, कंगन पानीदार नहीं था,
मैं उनका हो गया कि जिनका…
दोषी है तो बस इतनी ही
दोषी है मेरी तरुणाई,
अपनी उमर घटाकर मैंने
हर आँसू की उमर बढ़ायी,
और गुनाह किया है कुछ तो
इतना सिर्फ़ गुनाह किया है,
लोग चले जब राजभवन को
मुझको याद कुटी की आयी,
आज भले कुछ भी कह लो तुम, पर कल विश्व कहेगा सारा
नीरज से पहले गीतों में सब कुछ था पर प्यार नहीं था,
मैं उनका हो गया कि जिनका कोई पहरेदार नहीं था…
यह भी पढ़ें: ‘जितना कम सामान रहेगा, उतना सफ़र आसान रहेगा’