‘Jaadon Ki Neend’, a poem by Devesh Path Sariya

जाड़ों की नींद से
जब सुबह जगो तो
कुछ टूटा-टूटा लगता है

मधुमक्खी का डंक हो
जिसे खींच लेगी खटिया
कुछ देर और सोने से

पैरों के तलुओं में गर्मी आएगी
आँखों की थकान छू होगी
बिस्तर कुछ यूँ फुसलाता है

और डुब-डुब करती आँखें
डूब जाती हैं,
अतिरिक्त नींद के सपनों में…

देवेश पथ सारिया
हिन्दी कवि-लेखक एवं अनुवादक। पुरस्कार : भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023) प्रकाशित पुस्तकें— कविता संग्रह : नूह की नाव । कथेतर गद्य : छोटी आँखों की पुतलियों में (ताइवान डायरी)। अनुवाद : हक़ीक़त के बीच दरार; यातना शिविर में साथिनें।