अनुवाद: प्रेमचंद 

पिछले खत में मैं तुम्हें बतला चुका हूँ कि बहुत दिनों तक जमीन इतनी गर्म थी कि कोई जानदार चीज उस पर रह ही न सकती थी। तुम पूछोगी कि जमीन पर जानदार चीजों का आना कब शुरू हुआ और पहले कौन-कौन सी चीजें आईं। यह बड़े मजे का सवाल है, पर इसका जवाब देना आसान नहीं है। पहले यह देखो कि जान है क्या चीज। शायद तुम कहोगी कि आदमी और जानवर जानदार हैं। लेकिन दरख्तों और झाड़ियों, फूलों और तरकारियों को क्या कहोगी? यह मानना पड़ेगा कि वे सब भी जानदार हैं। वे पैदा होते हैं, पानी पीते हैं, हवा में साँस लेते हैं और मर जाते हैं। दरख्त और जानवर में खास फर्क यह है कि जानवर चलता-फिरता है, और दरख्त हिल नहीं सकते।

तुमको याद होगा कि मैंने लंदन के क्यू गार्डन में तुम्हें कुछ पौधे दिखाए थे। ये पौधे, जिन्हें आर्किड और पिचरक्व कहते हैं, सचमुच मक्खियाँ खा जाते हैं। इसी तरह कुछ जानवर भी ऐसे हैं, जो समुद्र के नीचे रहते हैं और चल-फिर नहीं सकते। स्पंज ऐसा ही जानवर है। कभी-कभी तो किसी चीज को देख कर यह बतलाना मुश्किल हो जाता है कि वह पौधा है या जानवर। जब तुम वनस्पतिशास्त्र (पेड़-पौधों की विद्या) या जीवशास्त्र (जिसमें जीव-जंतुओं का हाल लिखा होता है) पढ़ोगी तो तुम इन अजीब चीजों को देखोगी जो न जानवर हैं न पौधे। कुछ लोगों का खयाल है कि पत्थरों और चट्टानों में भी एक किस्म की जान है और उन्हें भी एक तरह का दर्द होता है; मगर हमको इसका पता नहीं चलता। शायद तुम्हें उन महाशय की याद होगी जो हमसे जेनेवा में मिलने आए थे उनका नाम है सर जगदीश बोस। उन्होंने परीक्षण करके साबित किया है कि पौधों में बहुत कुछ जान होती है। इनका खयाल है कि पत्थरों में भी कुछ जान होती है।

इससे तुम्हें मालूम हो गया होगा कि किसी चीज को जानदार या बेजान कहना कितना मुश्किल है। लेकिन इस वक्त हम पत्थरों को छोड़ देते हैं, सिर्फ जानवरों और पौधों पर ही विचार करते हैं। आज संसार में हजारों जानदार चीजे हैं। वे सभी किस्म की हैं। मर्द हैं और औरतें हैं। और इनमें से कुछ लोग होशियार हैं और कुछ लोग बेवकूफ हैं। जानवर भी बहुत तरह के हैं और उनमें भी हाथी, बंदर या चींटी की तरह समझदार जानवर हैं और बहुत-से जानवर बिल्कुल बेसमझ भी हैं। मछलियाँ और समुद्र की बहुत-सी चीजें जानदारों में और भी नीचे दरजे की हैं। उनसे भी नीचा दरजा स्पंजों और मुरब्बे की शक्ल की मछलियों का है जो आधा पौधा और जानवर है।

अब हमको इस बात का पता लगाना है कि ये भिन्न-भिन्न प्रकार के जानवर एक साथ और एक वक्त पैदा हुए या एक-एक कर धीरे-धीरे। हमें यह कैसे मालूम हो। उस पुराने जमाने की लिखी हुई तो कोई किताब है नहीं। लेकिन क्या संसार की पुस्तक से हमारा काम चल सकता है? हाँ, चल सकता है। पुरानी चट्टानों में जानवरों की हड्डियाँ मिलती हैं, इन्हें अंग्रेजी में फॉसिल या पथराई हुई हड्डी कहते हैं। इन हड्डियाँ से इस बात का पता चलता है कि उस चट्टान के बनने के बहुत पहले वह जानवर जरूर रहा होगा जिसकी हड्डियाँ मिली हैं। तुमने इस तरह की बहुत-सी छोटी और बड़ी हड्डियाँ लंदन के साउथ कैंसिंगटन के अजायबघर में देखी थीं।

जब कोई जानवर मर जाता है तो उसका नर्म और माँसवाला भाग तो फौरन सड़ जाता है, लेकिन उसकी हड्डियाँ बहुत दिनों तक बनी रहती हैं। यही हड्डियाँ उस पुराने जमाने के जानवरों का कुछ हाल हमें बताती हैं। लेकिन अगर कोई जानवर बिना हड्डी का ही हो, जैसे मुरब्बे की शक्ल वाली मछलियाँ होती हैं तो उसके मर जाने पर कुछ भी बाकी न रहेगा।

जब हम चट्टानों को गौर से देखते हैं और बहुत-सी पुरानी हड्डियों को जमा कर लेते हैं तो हमें मालूम हो जाता है कि भिन्न-भिन्न समय में भिन्न-भिन्न प्रकार के जानवर रहते थे। सबके सब एकबारगी कहीं से कूद कर नहीं आ गए। सबसे पहले छिलकेदार जानवर पैदा हुए जैसे घोंघे। समुद्र के किनारे तुम जो सुंदर घोंघे बटोरती हो वे उन जानवरों के छिलके हैं जो मर चुके हैं। उसके बाद ज्यादा ऊँचे दरजे के जानवर पैदा हुए, जिनमें साँप और हाथी जैसे बड़े जानवर थे, और वे चिड़ियाँ और जानवर भी, जो आज तक मौजूद हैं। सबके पीछे आदमियों की हड्डियाँ मिलती हैं। इससे यह पता चलता है कि जानवरों के पैदा होने में भी एक क्रम था। पहले नीचे दरजे के जानवर आए, तब ज्यादा ऊँचे दरजे के जानवर पैदा हुए और ज्यों-ज्यों दिन गुजरते गए वे और भी बारीक होते गए और आखिर में सबसे ऊँचे दरजे का जानवर यानी आदमी पैदा हुआ। सीधे-सादे स्पंज और घोंघे में कैसे इतनी तब्दीलियाँ हुईं और कैसे वे इतने ऊँचे दरजे पर पहुँच गए; यही बड़ी मजेदार कहानी है और किसी दिन मैं उसका हाल बताऊँगा। इस वक्त हम सिर्फ उन जानवरों का जिक्र कर रहे हैं जो पहले पैदा हुए।

जमीन के ठंडे हो जाने के बाद शायद पहली जानदार चीज वह नर्म मुरब्बे की-सी चीज थी जिस पर न कोई खोल था न कोई हड्डी थी वह समुद्र में रहती थी। हमारे पास उनकी हड्डियाँ नहीं हैं क्योंकि उनके हड्डियाँ थी ही नहीं, इसलिए हमें कुछ न कुछ अटकल से काम लेना पड़ता है। आज भी समुद्र में बहुत-सी मुरब्बे की सी चीजे हैं। वे गोल होती हैं लेकिन उनकी सूरत बराबर बदलती रहती है क्योंकि न उनमें कोई हड्डी है न खोल। उनकी सूरत कुछ इस तरह की होती है।

तुम देखती हो कि बीच में एक दाग है। इसे बीज कहते हैं और यह एक तरह से उसका दिल है। यह जानवर, या इन्हें जो चाहो कहो, एक अजीब तरीके से कट कर एक के दो हो जाते हैं। पहले वे एक जगह पतले होने लगते हैं और इसी तरह पतले होते चले जाते हैं, यहाँ तक कि टूट कर दो मुरब्बे की-सी चीजें बन जाते हैं और दोनों ही शक्ल असली लोथड़े की सी होती है।

बीज या दिल के भी दो टुकड़े हो जाते हैं और दोनों लोथड़ों के हिस्से में इसका एक-एक टुकड़ा आ जाता है। इस तरह ये जानवर टूटते और बढ़ते चले जाते हैं।

इसी तरह की कोई चीज सबसे पहले हमारे संसार में आई होगी। जानदार चीजों का कितना सीधा-सादा और तुच्छ रूप था! सारी दुनिया में इससे अच्छी या ऊँचे दरजे की चीज उस वक्त न थी। असली जानवर पैदा न हुए थे और आदमी के पैदा होने में लाखों बरस की देर थी।

इन लोथड़ों के बाद समुद्र की घास और घोंघे, केकड़े और कीड़े पैदा हुए। तब मछलियाँ आईं। इनके बारे में हमें बहुत-सी बातें मालूम होती हैं क्योंकि उन पर कड़े खोल या हड्डियाँ थीं और इसे वे हमारे लिए छोड़ गई हैं ताकि उनके मरने के बहुत दिनों के बाद हम उन पर गौर कर सकें। यह घोंघे समुद्र के किनारे जमीन पर पड़े रह गए। इन पर बालू और ताजी मिट्टी जमती गई और ये बहुत हिफाजत से पड़े रहे। नीचे की मिट्टी, ऊपर की बालू और मिट्टी के बोझ और दबाव से कड़ी होती गई। यहाँ तक कि वह पत्थर जैसी हो गई। इस तरह समुद्र के नीचे चट्टानें बन गईं। किसी भूचाल के आ जाने से या और किसी सबब से ये चट्टानें समुद्र के नीचे से निकल आईं और सूखी जमीन बन गईं। तब इस सूखी चट्टान को नदियाँ और मेह बहा ले गए। और जो हड्डियाँ उनमें लाखों बरसों से छिपी थीं बाहर निकल आईं। इस तरह हमें ये घोंघे या हड्डियाँ मिल गईं जिनसे हमें मालूम हुआ कि हमारी जमीन आदमी के पैदा होने के पहले कैसी थी।

दूसरी चिट्ठी में हम इस बात पर विचार करेंगे कि ये नीचे दरजे के जानवर कैसे बढ़ते-बढ़ते आजकल की सी सूरत के हो गए।

जवाहरलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू (नवंबर १४, १८८९ - मई २७, १९६४) भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे और स्वतन्त्रता के पूर्व और पश्चात् की भारतीय राजनीति में केन्द्रीय व्यक्तित्व थे। महात्मा गांधी के संरक्षण में, वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे और उन्होंने १९४७ में भारत के एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में स्थापना से लेकर १९६४ तक अपने निधन तक, भारत का शासन किया। वे आधुनिक भारतीय राष्ट्र-राज्य – एक सम्प्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतान्त्रिक गणतन्त्र - के वास्तुकार मानें जाते हैं। कश्मीरी पण्डित समुदाय के साथ उनके मूल की वजह से वे पण्डित नेहरू भी बुलाएँ जाते थे, जबकि भारतीय बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के रूप में जानते हैं।