‘Jab Hum Karte Hain’, a poem by Nirmal Gupt
जब हम ब्रेड के स्लाइस पर
मक्खन की परत लपेटकर
उसे धीरे-धीरे कुतरते हुए
पिंजरे में फँसे चूहे-से दिख रहे होते हैं
उस वक़्त ब्रह्माण्ड के किसी कोने में
कोई रानी अपनी भूखी प्रजा को
रोटी के बजाय
केक खाने का परामर्श देती है
जब हम पुराने अख़बारों के हाशियों पर
क्रान्ति का रोडमैप और
किसी औरत की निर्वसन तस्वीर बनाते हैं
रद्दी ख़रीदने वाला
काग़ज़ की फ़िज़ूलख़र्ची
और हमारे मसखरेपन की खिल्ली उड़ाता
बग़ल की गली से गुज़र जाता है
जब हम दिनभर की बकझक के बाद
थके हुए जबड़ों के साथ
अपनी अँधेरी गुफ़ाओं में
प्रवेश करते हुए सहमते हैं
तब वहीं कहीं छिपकर बैठा गीदड़
हमारे ख़ुद-ब-ख़ुद मर जाने का सपना
कच्ची नींद में देखता है
जब जीवनदायनी मकसद की नदी
भरी बरसात में रीतने लगती है
और हम जा छुपते हैं
सूखे भूसे जैसी कविताओं के ढेर में बनी
दीमकों की बाम्बी में
तब चकमक पत्थर में ठहरी चिंगारी को
आग में तब्दील होने की वजह मिल जाती है
जब छाया युद्ध लड़ने में निष्णात कायर
यशस्वी योद्धा का जामा धारण कर
इतिहास के ग़लीज़ पन्नों में से
अपने लिए प्रभामण्डल
और राजमुकुट ढूँढ लाते हैं
तब भूख से बेचैन गिद्धों को
महाभोज की भनक मिलती है!
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