वह
मेरी सर्वत्रता था
मैं
उसका एकान्त—
इस तरह हम
कहीं भी अन्यत्र नहीं थे।
जब
कोई क्षण टूटता
वहाँ होता
एक अनन्तकालीन बोध
उसके समयान्तर होने का
मुझमें।
जब
कोई क्षण टूटता
तब मेरा एकान्त
आकाश नहीं
एक छोटा-सा दिगन्त होता
उसके चारों ओर।
नसीम सय्यद की नज़्म 'अपनी तस्वीर मुझे आप बनानी होगी'