किताब: ‘जापानी सराय’
लेखिका: अनुकृति उपाध्याय

टिप्पणी: देवेश पथ सारिया

अनुकृति उपाध्याय ‌के लेखन के एकाधिक ध्रुव हैं। अनुकृति कभी बिल्कुल विदेशी संस्कृति से रूबरू कराती हैं और कभी भारतीय मध्यम वर्ग से, कभी हिन्दी में लिखती हैं और कभी अंग्रेज़ी में, कभी कहानियाँ और कभी कविताएँ। बतौर रचनाकार अनुकृति हर ध्रुव पर निस्पृह नज़र आती हैं।

‘जापानी सराय’ अनुकृति का पहला कहानी संग्रह है। ‘राजपाल एंड संस’ से प्रकाशित इस संग्रह में कुल दस कहानियाँ हैं। अनुकृति की कहानियों का शिल्प बहुत सधा हुआ होता है और भाषा ऐसी कि कहीं एक शब्द भी नहीं खटकता। दृश्यावलोकन की कला इस लेखिका को पता है। इन कहानियों से गुज़रते हुए वैज्ञानिक सन्दर्भ बहुतायत में आते हैं जो विज्ञान में दिलचस्पी वाले पाठकों को रोमांचित करते हैं, साथ ही अन्य पाठकों के ज्ञान में इज़ाफ़ा करते हैं।

पहली कहानी ‘जापानी सराय’ जो कि संग्रह की शीर्षक कहानी भी है, अनुकृति की कहानी बुनने की तकनीक की हस्ताक्षर है। इसमें जापान की संस्कृति है और वहाँ के खाद्य पदार्थों का उल्लेख भी है। बीच में कॉकटेल का ज़िक्र भी आता है, जो शराब के नामों, माहौल और बार-टेंडर की कुशलता के वर्णन के चलते शराब न‌ पीने वाले को भी आकर्षक लगता है। कहानी का एक किरदार शोधकर्ता है, इसलिए समुद्री जीवन के बारे में भी शोधपरक कुछ बातें हैं, पर उनसे कहानी कहीं भी बोझिल नहीं होती। अनुकृति जानती हैं कि ऐसी बातों को कहानी में प्रयुक्त करने का सही अनुपात क्या है। कहानीकार की कारीगरी का एक नमूना देखिए—

“हम दोनों को ग़लतफ़हमी हो गई थी। मैं जापान के लिए अपने प्यार को उसके लिए प्यार समझ बैठा। वह क्या समझी, यह मैं आज तक नहीं जान पाया। ऐसा अक्सर हो जाता है क्योंकि हम अपने को समझने में उतना समय भी ख़र्च नहीं करते जितना एक शर्ट चुनने में।”

‘चेरी ब्लॉसम’ कहानी में जापान में वसंत का वर्णन मिलता है एवं चेरी ब्लॉसम आधारित पर्यटन के महत्त्वपूर्ण ठिकानों का पता भी। साथ ही जापानी लोगों के जीने का तरीक़ा, विनम्रता और ज़िन्दादिली भी इस कहानी में देखी जा सकती है।

संग्रह की तीसरी कहानी ‘रेस्टरूम’ कुछ-कुछ एब्स्ट्रेक्ट होते हुए आगे बढ़ती है और एक अजनबी रोती हुई औरत, कहानी की मुख्य पात्र (इस पर बहस हो सकती है कि मुख्य पात्र कौन थी) के प्यार के दो बोल से पिघलकर उसे कसकर गले लगा लेती है। अनुकृति इस कहानी में कई जगह अद्भुत शिल्प बुनती हैं। अपनी एब्स्ट्रेक्ट कहानियों में वे ऐसे प्रयोग करती देखी गई हैं—

“सब कुछ थोड़ा-सा बिगड़ा हुआ है, अपनी धुरी से थोड़ा-सा हिला, अपनी लीक से कुछ टेढ़ा, जैसे किसी ने तस्वीर तिरछी लटका दी हो। ऐसे में शुक्र है कि चाय है और काम।”

‘शावर्मा’ कहानी एक कॉर्पोरेट कॉन्फ़्रेंस और वहाँ के दिखावटी साथ जैसे बोझिल परिदृश्य से शुरू होती है और जल्द ही अपनी भाषा से पाठक के मन पर पकड़ बनाना शुरू करती है। यहाँ एक पात्र है जिसकी प्रिय बिल्लियाँ उसकी पत्नी को पसन्द नहीं। पात्र को भी पसन्द है कोई और, मन ही मन।

“मेरे भीतर कुछ दुखता-सा उसे बाँहों में लेने के लिए कराहता है।”

और ये कवितामय पंक्तियाँ भी देखिए—

“मैं उसकी आँखों को चूम लेना चाहता हूँ। उनमें चमकता कुछ ढलकता क्यों नहीं?”

वह जो है और कोई, है अपने जीवन में उलझी हुई, अकेली संगीत सुनती हुई। इस कहानी में हॉन्गकॉन्ग नज़र आता है। कहानी का अंत चमत्कृत करने वाला है।

मध्यमवर्गीय परिवारों में कई अरेंज मैरिज बिना प्रेम के बस एक समझौते जैसी होती हैं। ‘प्रेजेंटेशन’ कहानी की नायिका और उसके पति के बीच प्रेम जैसा कुछ मुझे नज़र नहीं आया। इस कहानी में दर्शाया गया है कि पुरुष प्रधान समाज में एक स्त्री सुशिक्षित और कामकाजी होते हुए भी किस विकृत मानसिकता और दोयम व्यवहार का सामना करती है। नायिका को दिए गए ससुराल की महिलाओं के ताने पढ़कर लगता है कि कितना कुछ ग़लत है हमारे समाज में। कहानी का शीर्षक नायिका के काम के सन्दर्भ में देखते हुए एक कामचलाऊ-सा शीर्षक लगता है, किन्तु यदि इसी शीर्षक को पारिवारिक सन्दर्भ में स्त्री की दशा से जोड़कर देखा जाए, तो यह प्रतीकात्मक तौर पर सटीक मालूम होता है।

‘हरसिंगार के फूल’ मृत्यु और मृत्यु के बाद के दृश्यों का जीवंत चित्रण करती है। कहानी का अंत होते-होते एक अलग पहलू आता है, जिसके बारे में यह बहस हो सकती है कि क्या उसे इतना ही संक्षिप्त रखना उचित था? उसका बैकड्राॅप क्या और विस्तृत हो सकता था? यदि बैकड्रॉप इतना ही था, तो कहानी की नायिका का एक पूर्व सहकर्मी के साथ सम्बन्ध बनाना ज़ब्त प्रेम की अपेक्षा पिता की मृत्यु के शोक का असर अधिक लगता है।

‘इंसेक्टा’ कहानी में कीड़ों की विभिन्न प्रजातियों के बारे में जानकारी मिलती है, चूँकि कहानी का नायक उनके संकलन का शौक़ रखता है। यह कहानी भारतीय स्कूलों में व्याप्त बुलइंग कल्चर की तरफ़ भी ध्यान आकर्षित करती है। एक ओर हम भारतीय संस्कारों की दुहाई देते नहीं थकते और दूसरी तरफ़ हम अपने बच्चों को यह आधारभूत तमीज़ ही नहीं सिखा पाते कि अपने सहपाठियों की अलग अभिरुचि का सम्मान कर सकें और उनके बाहरी स्वरूप के आधार पर कोई भेदभाव या छींटाकशी न करें। साथ ही भारतीय परिवार में पढ़ाई को लेकर माता-पिता का दबाव बच्चे को मानसिक विक्षिप्तता की हद तक ले जाता है। कहानी का नायक इन दोनों चीज़ों‌ का शिकार है।

कहन के दृष्टिकोण से ‘छिपकली’ कहानी को इस संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में गिना जाएगा। एक माँ-बेटे के बीच आत्मीयता की इस कहानी की सबसे बड़ी ख़ूबी इसका बेहद साधारण होना है जो कि अपने संवादों, संवेदनशीलता और प्रवाह के माध्यम से पाठक को प्रभावित करती है।

मनुष्य प्रकृति और जीव-जंतुओं के बीच तारतम्य की कहानी है ‘जानकी और चमगादड़’। यहाँ भी अनुकृति अपनी वैज्ञानिक सोच और जानकारी साझा करती हैं। किन्तु हैं विज्ञान के मूल में यहाँ भावनाएँ ही। कहानी का दुखद अंत भावुक करता है।

‘डेथ सर्टिफ़िकेट’ संग्रह की अंतिम कहानी है। यह कहानी कॉर्पोरेट संस्कृति और नगरीय सम्भ्रान्त रिश्तों की कलई खोलती है। एक स्त्री की हत्या को डेथ सर्टिफ़िकेट पर सामान्य मृत्यु दर्शा दिया जाता है। इस षड़यंत्र में न केवल भ्रष्ट अधिकारी बल्कि स्त्री का पति और प्रेमी भी साथ देते हैं।

अनुकृति के लेखन सामर्थ्य के कई पहलुओं का आकार लेना अभी शेष है। कहानी के स्वभाव के अनुसार अपनी सामर्थ्य के विभिन्न आयामों का मिश्रण उनकी कहानियों को दीर्घायु प्रदान करेगा।

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देवेश पथ सारिया
हिन्दी कवि-लेखक एवं अनुवादक। पुरस्कार : भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023) प्रकाशित पुस्तकें— कविता संग्रह : नूह की नाव । कथेतर गद्य : छोटी आँखों की पुतलियों में (ताइवान डायरी)। अनुवाद : हक़ीक़त के बीच दरार; यातना शिविर में साथिनें।