जाते-जाते ही मिलेंगे लोग उधर के
जाते-जाते जाया जा सकेगा उस पार
जाकर ही वहॉं पहुँचा जा सकेगा
जो बहुत दूर सम्भव है
पहुँचकर सम्भव होगा
जाते-जाते छूटता रहेगा पीछे
जाते-जाते बचा रहेगा आगे
जाते-जाते कुछ भी नहीं बचेगा जब
तब सब कुछ पीछे बचा रहेगा
और कुछ भी नहीं में
सब कुछ होना बचा रहेगा!

विनोद कुमार शुक्ल की कविता 'प्रेम की जगह अनिश्चित है'

Book by Vinod Kumar Shukla:

विनोद कुमार शुक्ल
विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार हैं! 1 जनवरी 1937 को भारत के एक राज्य छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में जन्मे शुक्ल ने प्राध्यापन को रोज़गार के रूप में चुनकर पूरा ध्यान साहित्य सृजन में लगाया! वे कवि होने के साथ-साथ शीर्षस्थ कथाकार भी हैं। उनके उपन्यासों ने हिंदी में पहली बार एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को राह दी है। उन्होंने एक साथ लोकआख्यान और आधुनिक मनुष्य की अस्तित्वमूलक जटिल आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति को समाविष्ट कर एक नये कथा-ढांचे का आविष्कार किया है।