‘Jatigat Hatya’, a poem by Amit Pamasi

कितना जघन्य अपराध हुआ है
दो बच्चों को पीट-पीटकर मार दिया गया है
यह अपने आप में निंदनीय है

तुम नाहक ही इसमें जातीय पूर्वाग्रह तलाश रहे हो
यह एक अपराध है
जो किसी भी जाति, वर्ग या धर्म में हो सकता है

बहुत हुआ
तुम्हें तो हर हाल में जातिगत व्यवस्था को कोसना ही है

वे मुझे समझा रहे थे

तो क्या यह सच नहीं
कि दोनों मासूमों की हत्या जाति के कारण ही हुई

और क्या जाति भारत की सच्चाई नहीं
मैंने उन्हें समझाना चाहा

हाँ… मान लिया जाति भारत की सच्चाई है
तो इसका यह मतलब तो नहीं कि जातिगत आधार पर हत्याएँ आमंत्रित की जाती हैं

वे अपने तर्क पर अडिग थे

बिल्कुल
जातिगत आधार पर की जाती हैं
मैंने दृढ़ता से जबाव दिया
और पूछा

क्यों.. क्या शम्बूक की हत्या जातिगत आधार पर नहीं की गई थी

मौन अब तक पसरा है..!

अमित पमासी
पेशे से प्रशासनिक अधिकारी. फिलहाल दिल्ली में कार्यरत. कविता और कहानी लेखन से जुड़ाव. हाशिये पर पड़े अनदेखे समाज के लेखन में विशेष रुचि. संपर्क कर सकते हैं [email protected]