मुझे कस्तूरी की अनुभूति भर हुई है
जीवन एक मृग है
और
तृप्ति व शांति कस्तूरी!
पूरा जीवन बीत जाता है
दन्त कथाओं के कस्तूरी मृग की भाँति।
ये छुपी होती हैं भीतर
अंदर ही कहीं
आंखों से परे
समझ से दूर
लेकिन!
बहुत पास, बहुत पास
परन्तु
जीवन और मृग दोनों
भटकते हैं बाहर
नाक के भीतर रह जाती है
कस्तूरी की अनुभूति मात्र ही
और आ जाती है मृत्यु।