‘Jhootha Sach’, a poem by Kavita Nagar
सच ज़रा कम वापरतें हैं सभी
कि झूठ का चलन बढ़ गया है।
और लाज़िमी है
जो फ़ैशन में हो
उसका ही होता है इस्तेमाल।
नहीं तो कहलाएँगे ना पिछड़े।
ये झूठ बड़ा नम्बरदार है
सच के कपड़े चुराकर पहन लेता है
और सच को फिर छिपना पड़ता है।
झूठ के ख़ुराफ़ाती पाँव पालने में दिख जाते हैं
और सच गुदड़ी का लाल है, यह
बाद में समझ आता है।
झूठ के मुँह पर
पुती है मेकअप की परतें
और अपना धुला हुआ मुँह लेकर
खड़ा है भोलाभाला सच।