‘Jijeevisha’, a poem by Anupama Mishra

औरत जी लेती है हर हाल में
वो छुपा लेती है
आँखों में तैरते हुए आँसू को
एक कृत्रिम स्मित के पीछे
और चोट को ढक देती है
आँचल के कोने से।

वो सहेजती रहती है
घर, आँगन, दरवाज़े और खिड़कियाँ
और बन्द कर देती है
आलमारी में दबाकर
इच्छाएँ अपनी।

वो निभा जाती है
हर रिश्ता,
कुछ कच्चा, कुछ पक्का
शोख गहरा या हल्का,
सास, ननद, भाई, पिता।

औरत स्वप्न को जीवित रखती है
अपनी पलकों के कोरों में,
जी लेती है उन्हें,
किसी सखी सहेली,
हँसी, ठिठोली,
बहन, बेटी में।

वो मरने नहीं देती माँ को कभी,
जीती रहती है उसकी आत्मा बनकर,
उसके शरीर के बाद।

अनुपमा मिश्रा
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