‘Jis Tarah Aati Ho Tum’, a poem by Vijay Rahi

जिस तरह आती हो तुम
अपने इस पागल कवि से मिलने
रोज़-रोज़।
जब मिलती हो, ख़ूब मिलती हो,
बाथ भर-भरकर
फिर महिनों तक कोई खोज-ख़बर नहीं।

जिस तरह आती हैं सूरज की किरणें
पहाड़ो के कंधों से उतरकर धरती पर
धीरे-धीरे।
कई बार बादलों का कम्बल उतारकर
आसमानी खिड़की से सीधे कूद जाती हैं।

जिस तरह आती हैं हमारे घर मौसियाँ
बार-त्यौहार पर, बाल-मनुहार पर, सोग पर
कभी-कभी तो अचानक आकर
चौंका देती हैं।

ठीक इसी तरह आती है कविता
और इस चौंका देने वाली ख़ुशी का कोई तोड़ नहीं है।

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विजय राही
विजय राही युवा कवि हैं। हिन्दी के साथ उर्दू और राजस्थानी में समानांतर लेखन। हंस, मधुमती, पाखी, तद्भव, वर्तमान साहित्य, कृति बहुमत, सदानीरा, अलख, कथेसर, विश्व गाथा, रेख़्ता, हिन्दवी, कविता कोश, पहली बार, इन्द्रधनुष, अथाई, उर्दू प्वाइंट, पोषम पा,दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, डेली न्यूज, राष्ट्रदूत आदि पत्र-पत्रिकाओं, ब्लॉग और वेबसाइट्स पर कविताएँ - ग़ज़लें प्रकाशित। सम्मान- दैनिक भास्कर युवा प्रतिभा खोज प्रोत्साहन पुरस्कार-2018, क़लमकार द्वितीय राष्ट्रीय पुरस्कार (कविता श्रेणी)-2019 संप्रति - राजकीय महाविद्यालय, कानोता, जयपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत