जो जीवन की धूल चाटकर बड़ा हुआ है
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है
जिसने सोने को खोदा, लोहा मोड़ा है
जो रवि के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा,
नहीं मरेगा।
जो जीवन की आग जलाकर आग बना है
फ़ौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा, शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा,
नहीं मरेगा।
केदारनाथ अग्रवाल की कविता 'मज़दूर का जन्म'