जुदा तो हो गए लेकिन कहानी याद आएगी
वो रातों के हसीं मंज़र जवानी याद आएगी

मैं इतना सोचकर फूलों से अक्सर दूर रहता हूँ
तुम्हारे जिस्म की खुश्बू सुहानी याद आएगी

रकम तो हो चुका दिल के सफों पर इश्क़ का जादू
नये मंज़र भी होंगे तो पुरानी याद आएगी

इसी खलिहान में मैंने मेरा बचपन गुज़ारा है
दरोगा बन भी जाऊँ तो किसानी याद आएगी

लहू, बारूद, लाशें, अब यही कश्मीर घाटी है
महकती थी कभी ये ज़ाफ़रानी याद आएगी

ये ऊँचे बाँध भी बेशक तरक्की की निशानी हैं
मगर अफ़सोस दरिया की रवानी याद आएगी!

यह भी पढ़ें: आतिफ़ ख़ान की ग़ज़ल ‘वो बात जिस से ये डर था खुली तो जाँ लेगी’

चित्रांश खरे
चित्रांश खरे का जन्म दतिया जिले के अकोला ग्राम में नवम्बर 1989 को हुआ चित्रांश खरे के पिता का खेती का व्यवसाय है और माता गृहणी है। मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे चित्रांश खरे की माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा ग्राम अकोला में ही संपन्न हुई। इसके उपरान्त वह जिला दतिया में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर इंजीनियरिंग करने के लिए भोपाल चले गए और 2011 में इंजीनियरिंग करने के बाद तकनीकी क्षेत्र में ना जाते हुए साहित्यिक क्षेत्र में जाने का निर्णय लिया। उनके इस निर्णय से परिजन नाखुश थे लेकिन उन्होंने अपनी मंजिल साहित्यिक क्षेत्र में ही निर्धारित कर ली थी।