‘Judai Ki Pehli Raat’, a nazm by Parveen Shakir

आँख बोझल है
मगर नींद नहीं आती है
मेरी गर्दन में हमाइल तिरी बाँहें जो नहीं
किसी करवट भी मुझे चैन नहीं पड़ता है
सर्द पड़ती हुई रात
माँगने आयी है फिर मुझ से
तिरे नर्म बदन की गर्मी
और दरीचों से झिझकती हुई आहिस्ता हवा
खोजती है मिरे ग़म-ख़ाने में
तेरी साँसों की गुलाबी ख़ुश्बू!

मेरा बिस्तर ही नहीं
दिल भी बहुत ख़ाली है
इक ख़ला है कि मिरी रूह में दहशत की तरह उतरा है
तेरा नन्हा सा वजूद
कैसे उसने मुझे भर रक्खा था
तिरे होते हुए दुनिया से तअल्लुक़ की ज़रूरत ही न थी
सारी वाबस्तगियाँ तुझ से थीं
तू मिरी सोच भी, तस्वीर भी और बोली भी
मैं तिरी माँ भी, तिरी दोस्त भी, हम-जोली भी
तेरे जाने पे खुला
लफ़्ज़ ही कोई मुझे याद नहीं
बात करना ही मुझे भूल गया!

तू मिरी रूह का हिस्सा था
मिरे चारों तरफ़
चाँद की तरह से रक़्साँ था मगर
किस क़दर जल्द तिरी हस्ती ने
मिरे अतराफ़ में सूरज की जगह ले ली है
अब तिरे गिर्द मैं रक़्सिंदा हूँ!
वक़्त का फ़ैसला था
तिरे फ़र्दा की रिफ़ाक़त के लिए
मेरा इमरोज़ अकेला रह जाए
मिरे बच्चे, मिरे लाल
फ़र्ज़ तो मुझ को निभाना है मगर
देख कि कितनी अकेली हूँ मैं!

यह भी पढ़ें: परवीन शाकिर की नज़्म ‘मुझे मत बताना’

Recommended Book:

परवीन शाकिर
सैयदा परवीन शाकिर (नवंबर 1952 – 26 दिसंबर 1994), एक उर्दू कवयित्री, शिक्षक और पाकिस्तान की सरकार की सिविल सेवा में एक अधिकारी थीं। इनकी प्रमुख कृतियाँ खुली आँखों में सपना, ख़ुशबू, सदबर्ग, इन्कार, रहमतों की बारिश, ख़ुद-कलामी, इंकार(१९९०), माह-ए-तमाम (१९९४) आदि हैं। वे उर्दू शायरी में एक युग का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी शायरी का केन्द्रबिंदु स्त्री रहा है।