कब कैसे है?
किसे क्या है?
कौन कहाँ है?
कौन-सा कितना है?
किधर किसका है?
क्यूँ मैं अक्सर यही सोचता हूँ?
कि ‘क’ अगर हिन्दी में नहीं होता तो हम –
कुछ भी नहीं पूछ पाते!