उस कमरे में घना अंधेरा है
लकड़ियों के उखड़े हुए फट्टे पड़े हैं इधर-उधर
जिनमें धँसी हुई हैं कीलें
जो पलक झपकते ही हो सकती हैं रक्तिम
बिजली की नंगी तारों में दौड़ रहा है करंट
जो भीतर घुसे हुए लोगों का
काम तमाम कर सकता है कुछ ही सैकण्डों में
पर इस सबके बावजूद
उनके माथे पर शिकन नहीं है कोई
वो व्यस्त हैं अपने-अपने कामों में
उनको पता है किस तार को छूने से
उनके घर पर टूट पड़ेगा पहाड़
इसलिये कुछ हद तक बेफिक्र हैं
अपनी मौत को लेकर।

उन्हें फिक्र है तो बस ये
कि शाम को अपने बच्चे के लिये क्या लेकर जायें
या आज सब्जी में क्या बनाया होगा उनकी पत्नी ने
इस बार छठ के लिये पैसे कम तो नहीं पड़ेंगे
इस बार स्कूल फीस तो नहीं बढ़ा देगा

इन सबके बीच
वो नज़र रखे हुए हैं दरवाज़े पर
कोई अगर करता है भीतर घुसने की कोशिश
मालिक के अलावा
तो उसे टोक कर बाहर टंगा बोर्ड पढ़ने को कहते हैं
बोर्ड
जिसपर लिखा है
‘काम चालू है’।

अंकुश कुमार
अंकुश कुमार दिल्ली में रहते हैं, इंजीनियरिंग की हुई है और फिलहाल हिन्दी से लगाव के कारण हिन्दी ही से एम. ए. कर रहे हैं, साथ ही एक वेब पोर्टल 'हिन्दीनामा' नवोदित लेखकों को आगे लाने के लिये संचालित करते हैं।