मुख पर लगा चंदन का लेप
हस्त सुसज्जित अरुण रंग और कंबु द्वय
नयनों में सजा हुआ अंजन
शोभित कलत्र में कमरबन्द
लट घूम रहे मुख पर यथा कंद कृष्ण
परिभाषित हो रही कविता एक
कमनीया, कुसुमिता, कुसुमकली
परन्तु कब तक,
दो त्याग जो हों व्याधि समान वसन
आ गया काल वह, धारण कर लो आली
वसन इतर, आशुग कलाप
शिखर पर हो अलंकृत चंचला स्वयं
मिलेंगे खल हर क्षण हर पल
कस लो कमर
कांतार हुए दुर्गम।

अनुपमा मिश्रा
My poems have been published in Literary yard, Best Poetry, spillwords, Queen Mob's Teahouse, Rachanakar and others