‘Kaash Tum Yuva Nahi Hote’, a poem by Rupam Mishra
प्रेम हमें कितनी श्रेष्ठतम आत्मिक
अवस्था में पहुँचा देता है!
इसकी थाह मुझे तब मिली जब
तुम्हारी आँखों में डूबते हुए मैंने
अतिअनुराग से कहा-
काश! तुम युवा नहीं होते!
सब सच जानते हुए भी
तुमने हँसकर कहा- क्यों?
मैंने कहा- तो मैं हर पल बस तुमसे ही बातें करती।
दो युवा स्त्री पुरुष का ऐसा
सामिप्य जग कहाँ देख पाता है।
कभी न्याय की तराजू को अपने हाथ में लेना
एक तरफ़ तुम अपने प्रेम, त्याग और प्रबुद्धता को रखना
दूसरी तरफ़ मेरा सिर्फ़ एक कथ्य कि
काश! तुम युवा नहीं होते!
दोनों का वज़न अच्छे से तोल लेना
और बताना कि कौन भारी पड़ा?!
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