काट के अपने पर जाते हैं
पंछी अब चलकर जाते हैं
बन के क़ाबिल, अपने-अपने
घर से हो बेघर जाते हैं
मौत पे किसकी ये रोज़ाना
लटके-लटके सर जाते हैं
कोई मेला है बचपन का?
ये सब लोग किधर जाते हैं?
आज अकेले हैं तो जाना
लोग अकेले मर जाते हैं
काट के अपने पर जाते हैं
पंछी अब चलकर जाते हैं
बन के क़ाबिल, अपने-अपने
घर से हो बेघर जाते हैं
मौत पे किसकी ये रोज़ाना
लटके-लटके सर जाते हैं
कोई मेला है बचपन का?
ये सब लोग किधर जाते हैं?
आज अकेले हैं तो जाना
लोग अकेले मर जाते हैं