‘Kabhi Itni Dhanwan Mat Banana’, a poem by Rituraj

कभी इतनी धनवान मत बनना कि लूट ली जाओ

सस्ते स्कर्ट की प्रकट भव्यता के कारण
हांग्जो की गुड़िया के पीछे वह आया होगा
चुपचाप बाईं जेब से केवल दो अंगुलियों की कलाकारी से
बटुआ पार कर लिया होगा

सुन्दरता के बारे में उसका ज्ञान मात्र वित्तीय था
एक लड़की का स्पर्श क्या होता है, वह बिलकुल भूल चुका था

एक नितांत अपरिचित जेब में अगर उसे जूड़े का पिन
या बूंदे जैसी स्वप्निल-सी वस्तुएँ मिलतीं तो वह निराश हो जाता
और तब हांग्जो की लड़कियों के गालों की लालिमा भी
उसे पुनर्जीवित नहीं कर सकती थी

उस वक़्त वह मात्र एक औज़ार था बाज़ार व्यवस्था का
खुले द्वार जैसी जेब में जिसे उसकी तेज़ निगाहों ने झाँककर देखा था
कि एक भोली रूपसी की अलमस्त इच्छाएँ उस बटुए में भरी थीं
कि बिना किसी हिंसा के उसने साबित कर दिया
सुन्दर होने का मतलब लापरवाह होना नहीं है
कि अगर लक्ष्य तय हो तो कोई दूसरा आकर्षण तुम्हें डिगा नहीं सकता।

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Book by Rituraj:

ऋतुराज
कवि ऋतुराज का जन्म राजस्थान में भरतपुर जनपद में सन 1940 में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से अंग्रेजी में एम. ए. की उपाधि ग्रहण की। उन्होंने लगभग चालीस वर्षों तक अंग्रेजी-अध्ययन किया। ऋतुराज के अब तक के प्रकाशित काव्य संग्रहों में 'पुल पानी मे', 'एक मरणधर्मा और अन्य', 'सूरत निरत' तथा 'लीला अरविंद' प्रमुख है।