कभी जब याद आ जाते।
नयन को घेर लेते घन,
स्वयं में रह न पाता मन
लहर से मूक अधरों पर
व्यथा बनती मधुर सिहरन।
न दुःख मिलता, न सुख मिलता
न जाने प्रान क्या पाते।
तुम्हारा प्यार बन सावन,
बरसता याद के रसकन
कि पाकर मोतियों का धन
उमड़ पड़ते नयन निर्धन।
विरह की घाटियों में भी
मिलन के मेघ मंडराते।
झुका-सा प्रान का अम्बर,
स्वयं ही सिन्धु बन-बनकर
हृदय की रिक्तता भरता
उठा शत कल्पना जलधर।
हृदय-सर रिक्त रह जाता
नयन घट किन्तु भर आते।
कभी जब याद आ जाते।