कभी जब याद आ जाते।

नयन को घेर लेते घन,
स्वयं में रह न पाता मन
लहर से मूक अधरों पर
व्यथा बनती मधुर सिहरन।

न दुःख मिलता, न सुख मिलता
न जाने प्रान क्या पाते।

तुम्हारा प्यार बन सावन,
बरसता याद के रसकन
कि पाकर मोतियों का धन
उमड़ पड़ते नयन निर्धन।

विरह की घाटियों में भी
मिलन के मेघ मंडराते।

झुका-सा प्रान का अम्बर,
स्वयं ही सिन्धु बन-बनकर
हृदय की रिक्तता भरता
उठा शत कल्पना जलधर।

हृदय-सर रिक्त रह जाता
नयन घट किन्तु भर आते।

कभी जब याद आ जाते।

नामवर सिंह
नामवर सिंह (जन्म: 28 जुलाई 1926 बनारस, उत्तर प्रदेश - निधन: 19 फरवरी 2019, नयी दिल्ली) हिन्दी के शीर्षस्थ शोधकार-समालोचक, निबन्धकार तथा मूर्धन्य सांस्कृतिक-ऐतिहासिक उपन्यास लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी के प्रिय शिष्‍य रहे। अत्यधिक अध्ययनशील तथा विचारक प्रकृति के नामवर सिंह हिन्दी में अपभ्रंश साहित्य से आरम्भ कर निरन्तर समसामयिक साहित्य से जुड़े हुए आधुनिक अर्थ में विशुद्ध आलोचना के प्रतिष्ठापक तथा प्रगतिशील आलोचना के प्रमुख हस्‍ताक्षर थे।