‘Kabza’, a poem by Amandeep Gujral
दृश्य 1
एक निर्जन-सा चौराहा
बड़ा सा पेड़
साँय-साँय करती हवा
इक्का-दुक्का गाड़ियाँ
मुट्ठी भर लोग
दृश्य 2
एक छोटा-सा चौकोर पत्थर
लाल-काली रेखाएँ
थोड़ी-सी अगरबत्तियाँ और एक दिया
दृश्य 3
स्वयं घोषित सेवक
कुछ रेड़ियों में फूल मालाएँ
ढोल-मंजीरे
दृश्य 4
नींव का पत्थर
छोटा-सा चबूतरा
बड़ी तेज़ी से बढ़ती इमारत
उससे भी तीव्र गति से बढ़ती दान-पेटी
और उससे भी तेज़
बढ़ते पेट, महल, नौकर-चाकर और गाड़ियाँ
अनगिनत भक्त
कुर्सी तक पहुँच।
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