काग़ज़ पर लिखी गई कविताओं में
पेड़ों की त्वचा का दर्द लिखा जाता है
चुप्पी दो होंठों के बीच का शब्द नहीं
दो आँखों के मध्य निरन्तर सम्वाद है
प्रिये, तुम्हारे होंठ पर लिया गया चुम्बन
मेरी देह में थरथराता है
तुम पानी की सतह पर खड़ी रहती हो
तुम्हारे बिम्ब को ओक में भरने की कोशिश में
प्यास बढ़ जाती है
मैं जिस भाषा में तुम्हें प्रेम कर पाया
उस भाषा की लिपि
तय कर पाना मुश्किल है…