आज का मौसम कितना प्यारा
कहीं चलो ना, जी!
बलिया बक्सर पटना आरा
कहीं चलो ना, जी!
हम भी ऊब गए हैं इन
ऊँची दीवारों से,
कटकर जीना पड़ता है
मौलिक अधिकारों से।
मानो भी प्रस्ताव हमारा
कहीं चलो ना, जी!
बोल रहा है मोर अकेला
आज सबेरे से,
वन में लगा हुआ है मेला
आज सबेरे से।
मेरा भी मन पारा-पारा
कहीं चलो ना, जी!
झील ताल अमराई पर्वत
कब से टेर रहे,
संकट में है धूप का टुकड़ा
बादल घेर रहे।
कितना कोई करे किनारा
कहीं चलो ना, जी!
सुनती नहीं हवा भी कैसी
आग लगाती है,
भूख जगाती है यह सोयी
प्यास जगाती है।
सूख न जाए रस की धारा
कहीं चलो ना, जी!
आज का मौसम कितना प्यारा
कहीं चलो ना, जी!
कैलाश गौतम की कविता 'सौ में दस की भरी तिजोरी, नब्बे ख़ाली पेट'