विवरण: खामोशी और कोलाहल के बीच की किसी जगह पर वह कहीं खड़ा है। और इस खेल का मजा ले रहा है। क्या सचमुच खामोशी और कोलाहल के बीच कोई स्पेस था, जहां वह खड़ा था।’उपर्युक्त पंक्तियां बहुचर्चित कथाकार शशिभूषण द्विवेदी की कहानी ‘काला गुलाब’ से हैं। ये ‘काला गुलाब’ जैसी जटिल संवेदना और संरचना की कहानी को ‘डिकोड’ करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लेकिन उसके लेखक शशिभूषण द्विवेदी की रचनाशीलता को समझने का सूत्र भी उपलब्ध कराती हैं। वाकई शशिभूषण की कहानियाँ न तो यथार्थवाद और जीवन-जीवन का शोर मचाती हैं, न ही वे कला की चुप्पियाँ चुनती हैं। शशिभूषण इन दोनों के बीच हैं और खामोशी के साथ जीवन की यथार्थ की चहल-पहल, उसकी रंग-बिरंगी छवियों को पकड़ते हैं।
साथ ही वे जीवन के कोलाहल के बीच भी उसकी अदृश्य रेखाओं की खोज करते हैं-उसकी चुप ध्वनियों को सुनते हैं। बात शायद स्पष्ट नहीं हो सकी है इसलिए शशिभूषण की ‘काला गुलाब’ से ही एक अन्य उदाहरण- ‘लिखना आसान होता है। लिखते हुए रुक जाना मुश्किल। इसी मुश्किल में शायद जिंदगी का रहस्य है।’ लिखते-लिखते रुक जाने की मुश्किल उन्हीं रचनाकारों के सामने दरपेश होती है जो खामोशी की आवाज सुनते हैं और कोलाहल की खामोशी भी महसूस करते हैं। लेखक के लिए यह एक कठिन सिद्धि है, लेकिन सुखद है कि शशिभूषण इसे हासिल करते हुए दिखते हैं। बेशक उनकी यह उपलब्धि उन्हें मिले पुरस्कारों से कई-कई गुना महत्त्वपूर्ण है।
—अखिलेश, (प्रसिद्ध कथाकार, संपादक-तद्भव)
- Paperback: 144 pages
- Publisher: Rajkamal Prakashan (1 January 2018)
- Language: Hindi
- ISBN-10: 9387462595
- ISBN-13: 978-9387462595
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