कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं,
गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो,
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं।

वो सलीबों के क़रीब आए तो हमको,
क़ायदे-क़ानून समझाने लगे हैं।

एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है,
जिसमें तहख़ानों से तहख़ानों लगे हैं।

मछलियों में खलबली है, अब सफ़ीने,
उस तरफ़ जाने से कतराने लगे हैं।

मौलवी से डाँट खाकर अहले-मक़तब,
फिर उसी आयत को दुहराने लगे हैं।

अब नई तहज़ीब के पेशे-नज़र हम,
आदमी को भूनकर खाने लगे हैं।

दुष्यंत कुमार की कविता 'मापदंड बदलो'

Book by Dushyant Kumar:

दुष्यन्त कुमार
दुष्यंत कुमार त्यागी (१९३३-१९७५) एक हिन्दी कवि और ग़ज़लकार थे। जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था। हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था। उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे। इस समय सिर्फ़ ४२ वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की।