किसी कवि ने फ़रमाया
किसी ज्योतिष ने समझाया
किसी वैज्ञानिक
या किसान ने बताया
वसन्त आ गया
कैसे पता चला…!
तन से
मन से
जन से
या धन से
वसन्त आया…
कैसे पता चला!
दलितों की बस्ती से
बाभनों की पोथी से
बेरोज़गारों की जूती से
वसन्त के आने की सूचना
मिली कैसे…!
किसी अख़बार ने बताया
किसी हुक्मरान ने किया ऐलान
या सियासतदानों ने बताया
कैसे पता चला कि वसन्त आया
ठीक ऐसे वक़्त में
जब चुप्पियों की नीलामी हो रही
शब्दों ने ख़ामोशी ओढ़ ली है
बिना हलचल
बिना सुगबुगाहट
पता कैसे चला कि वसन्त आया
वनों का एकान्त तो अभी भी निर्जन है
टेसू ठीक से खिले भी नहीं
फूलों के मन पर छिलकों की परतें हैं
आसमान ओस के आँसू रो रहा
तितलियाँ सहमी-सहमी सी हैं
आपने कैसे जान लिया कि
वसन्त आ गया!
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