किसी कवि ने फ़रमाया
किसी ज्योतिष ने समझाया
किसी वैज्ञानिक
या किसान ने बताया
वसन्त आ गया
कैसे पता चला…!

तन से
मन से
जन से
या धन से
वसन्त आया…
कैसे पता चला!

दलितों की बस्ती से
बाभनों की पोथी से
बेरोज़गारों की जूती से
वसन्त के आने की सूचना
मिली कैसे…!

किसी अख़बार ने बताया
किसी हुक्मरान ने किया ऐलान
या सियासतदानों ने बताया
कैसे पता चला कि वसन्त आया

ठीक ऐसे वक़्त में
जब चुप्पियों की नीलामी हो रही
शब्दों ने ख़ामोशी ओढ़ ली है
बिना हलचल
बिना सुगबुगाहट
पता कैसे चला कि वसन्त आया

वनों का एकान्त तो अभी भी निर्जन है
टेसू ठीक से खिले भी नहीं
फूलों के मन पर छिलकों की परतें हैं
आसमान ओस के आँसू रो रहा
तितलियाँ सहमी-सहमी सी हैं
आपने कैसे जान लिया कि
वसन्त आ गया!

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Book by Akhileshwar Pandey:

अखिलेश्वर पांडेय
पत्रकारिता | जमशेदपुर (झारखंड) में निवास | पुस्तक : पानी उदास है (कविता संग्रह) - 2017 प्रकाशन: हंस, नया ज्ञानोदय, वागर्थ, पाखी, कथादेश, परिकथा, कादंबिनी, साक्षात्कार, इंद्रप्रस्थ भारती, हरिगंधा, गांव के लोग, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, प्रभात खबर आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं, पुस्तक समीक्षा, साक्षात्कार व आलेख प्रकाशित. कविता कोश, हिन्दी समय, शब्दांकन, स्त्रीकाल, हमरंग, बिजूका, लल्लनटॉप, बदलाव आदि वेबसाइट व ब्लॉग पर भी कविताएं व आलेख मौजूद. प्रसारण: आकाशवाणी जमशेदपुर, पटना और भोपाल से कविताएं व रेडियो वार्ता प्रसारित. फेलोशिप/पुरस्कार: कोल्हान (झारखंड) में तेजी से विलुप्त होती आदिम जनजाति सबर पर शोधपूर्ण लेखन के लिए एनएफआई का फेलोशिप और नेशनल मीडिया अवार्ड. ई-मेल : [email protected]