अगले कातिक में मैं बारह साल की हो जाती
ऐसा माँ कहती थी
लेकिन जेठ में ही मेरा
ब्याह करा दिया गया
ब्याह शब्द से
डर लगता था
जब से पड़ोस की काकी
जल के एक दिन मर गयी
मरद की मार
और पुलिस की लाठी से
मरी हुई देहों का
पंचनामा नहीं होता,
ना ही रपट लिखायी जाती है
नैहर में हम हर साल सावन में कजरी गाते थे
‘तरसत जियरा हमार नैहर में
कहत छबीले पिया घर नाहीं
नाहीं भावत जिया सिंगार, नैहर में’
गीतों में ससुराल जाना अच्छा लगता है
लेकिन कजरी के गीतों से ससुराल कितना अलग होता है
नैहर और ससुराल
दो गाँवों से ज़्यादा दूरी का मैंने व्यास नहीं देखा
ना ही इससे ज़्यादा घुटन
मैं घुटन से तंग हूँ
लेकिन
सब कुछ पीछे छोड़ के कहीं नहीं जा सकती
विवाहित स्त्रियों का भाग जाना
क्षम्य नहीं होता,
उनको जीवित जला दिया जाना क्षम्य होता है
कुछ घरों की बच्चियाँ सीधे औरत बन जाती हैं
लड़कियाँ नहीं बन पातीं
कजरी के गीत मिथ्या हैं
जीवन में कजरी के गीतों-सी मिठास नहीं होती।
आर. चेतनक्रान्ति की कविता 'मर्दानगी'