सुनता हूँ, मैंने भी देखा,
काले बादल में रहती चाँदी की रेखा!

काले बादल जाति-द्वेष के,
काले बादल विश्‍व-क्‍लेश के,
काले बादल उठते पथ पर
नव स्‍वतंत्रता के प्रवेश के!
सुनता आया हूँ, है देखा,
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा!

आज दिशा हैं घोर अँधेरी
नभ में गरज रही रण-भेरी,
चमक रही चपला क्षण-क्षण पर
झनक रही झिल्‍ली झन-झनकर!
नाच-नाच आँगन में गाते केकी-केका
काले बादल में लहरी चाँदी की रेखा।

काले बादल, काले बादल,
मन भय से हो उठता चंचल!
कौन हृदय में कहता पलपल
मृत्‍यु आ रही साजे दलबल!
आग लग रही, घात चल रहे, विधि का लेखा!
काले बादल में छिपती चाँदी की रेखा!

मुझे मृत्‍यु की भीति नहीं है,
पर अनीति से प्रीति नहीं है,
यह मनुजोचित रीति नहीं है,
जन में प्रीति प्रतीति नहीं है!

देश जातियों का कब होगा,
नव मानवता में रे एका,
काले बादल में कल की, सोने की रेखा!

सुमित्रानन्दन पंत की कविता 'तुम यदि सुन्दर नहीं रहोगी'

Book by Sumitranandan Pant:

सुमित्रानन्दन पन्त
सुमित्रानंदन पंत (20 मई 1900 - 28 दिसम्बर 1977) हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उनका जन्म कौसानी बागेश्वर में हुआ था। झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भ्रमर-गुंजन, उषा-किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था। गौर वर्ण, सुंदर सौम्य मुखाकृति, लंबे घुंघराले बाल, सुगठित शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग मुखरित करता था।