काली-काली घटा देखकर
जी ललचाता है,
लौट चलो घर पंछी
जोड़ा ताल बुलाता है।
सोंधी-सोंधी
गंध खेत की
हवा बाँटती है,
सीधी-सादी राह
बीच से
नदी काटती है,
गहराता है रंग और
मौसम लहराता है।
लौट चलो घर पंछी
जोड़ा ताल बुलाता है।
कैसे-कैसे
दृश्य नाचने लगे
दिशाओं में,
मेरी प्यास
हमेशा चातक रही
घटाओं में,
बींध रहा है गीत प्यार का
कैसा नाता है।
लौट चलो घर पंछी
जोड़ा ताल बुलाता है।
सन्नाटे में
आँगन की बिरवाई
टीस रही,
मीठी-मीठी छुवन
और
अमराई टीस रही,
पागल को जैसे कोई
पागल समझाता है।
लौट चलो घर पंछी
जोड़ा ताल बुलाता है।
कैलाश गौतम की कविता 'दस की भरी तिजोरी'