बहुत दिन बीते कलिंग की कोई सुधबुध नहीं लेता
चक्रवर्ती सम्राट को बिसराए हुए अरसा हुआ
प्रजा लोकल गोयब्ल्स के इर्द-गिर्द जुटती है
उसे इतिहास की तह में उतरने से अधिक
शब्द-दर-शब्द फ़रेब के व्याकरण में
अपना त्रिदर्शी भविष्यकाल
इस किनारे से साफ़-साफ़ दिखने लगा है।
बहुत दिन बीते
किसी राजसी रसोईए को नहीं मिला
सामिष पकाने के बजाए
खालिस घी मे बघारकर दाल-भात पकाने का हुक्मनामा
राजसी गुप्तचर करछी लिए
चूल्हे पर चढ़ी हंडियों में तपन के सुराग ढूँढते हैं।
कलिंग में अब
आमने-सामने लड़ाई की बात नहीं होती
वहाँ की रक्तरंजित धरती में
बिना किसी खाद-पानी और साफ़ हवा के
उपजते हैं सुगंधित बहुरंगी फूल
वहाँ के लोग अब न घायलों की कराह को याद करते हैं
न मायूस विजेता के पश्चताप को
वे लगातार पूछते रहते हैं
परस्पर साग-भाजी के चढ़ते उतरते भाव।
कलिंग में जब युद्ध हुआ तो हुआ होगा
मरने वाले मर गए होंगे
घायलों ने भी थोड़ी देर तड़पने के बाद
दम तोड़ दिया होगा, आख़िरकार
एक राजा विजयी हुआ होगा
एक अपनी तमाम बहादुरी के बावजूद हार गया होगा।
शिलालेखों पर दर्ज़ हुई इबारत
यदि इतिहास है तो
इसे जल्द से जल्द भूल जाने में भलाई है
अन्यथा महान बनने के लिए
लाखों लाख गर्दनों की बार-बार ज़रूरत पड़ेगी।
कलिंग वहाँ नहीं है
जहाँ उसका होना बताया जाता है
वह हर उस जगह है
जहाँ मुंडविहीन देह के शीर्ष पर
सद्भावना और वैश्विक शांति की पताका
बड़े गर्व से लहराने का सनातन रिवाज है।