नाचती हैं
भिन्न-भिन्न ताल पे
भिन्न-भिन्न राग पे
या यूँ कहें
नचायी जाती हैं,
मर्यादाओं की
रिश्तों की
वात्सल्य की
भावनाओं की
त्याग की
और ना जाने कितनी ही
वर्जनाओं की डोर से
बाँध दी जाती हैं
नचाने वाली उँगलियाँ बदलती रहीं
डोर भी बदली
मंच बदले
नहीं बदली तो बस
ये कठपुतलियाँ!