इस अदेखी डोर का
ये कौन सूत्रधार है
ऐसे विहंगम चित्र का
ये कौन चित्रकार है

चहुं ओर दिखे है धूल-धूल
कैसा हवा का भार है
सागर भी रक्तिम हो गया
कैसा ये नरसंहार है

भीख मांगता है बचपन
घायल मां का प्यार है
कैसी है ये मानवता
फ़िर कैसा ये आभार है

“तुम बिन हम अब जी न सकेंगे”
कह के चेहरे झुलसाए जाते हैं
प्रतिशोध की ज्वाला में जलता
तब कैसा ये इक़रार है

तन की भूख मिटाने को
अस्मत की बोली लगती है
सभ्यताओं की मंडी में
ये कैसा बाज़ार है

आंखों से आँसू झरते हों तब
खुशियों का प्रतिकार है
जब अमन चैन का नाम नहीं
तो धिक्कृत ये संसार है

ऐसे विहंगम चित्र का
ये कौन चित्रकार है!
ये कौन सूत्रधार है!