तुम्हारे आभार की लिपि में प्रकाशित
हर डगर के प्रश्न हैं मेरे लिए पठनीय
कौन-सा पथ कठिन है…?
मुझको बताओ
मैं चलूँगा।
कौन-सा सुनसान तुमको कोंचता है
कहो, बढ़कर उसे पी लूँ
या अधर पर शंख-सा रख फूँक दूँ—
तुम्हारे विश्वास का जय-घोष
मेरे साहसिक स्वर में मुखर है।
तुम्हारा चुम्बन
अभी भी जल रहा है भाल पर
दीपक सरीखा
मुझे बतलाओ
कौन-सी दिशि में अँधेरा अधिक गहरा है!
दुष्यन्त कुमार की कविता 'प्रेरणा के नाम'