संग्रह ‘साहस गाथा’ से

जब प्रतिगामी युग-धर्म
घोंटता है वक़्त के उमड़ते बादलों का गला
तब न ख़ून बहता है
न आँसू।

वज्र बनकर गिरती है बिजली
उठता है वर्षा की बूँदों से तूफ़ान
पोंछती है माँ धरती अपने आँसू
जेल की सलाखों से बाहर आता है
कवि का सन्देश गीत बनकर।

कब डरता है दुश्मन कवि से?
जब कवि के गीत अस्त्र बन जाते हैं
वह क़ैद कर लेता है कवि को।
फाँसी पर चढ़ाता है
फाँसी के तख़्ते के एक ओर होती है सरकार
दूसरी ओर अमरता
कवि जीता है अपने गीतों में
और गीत जीता है जनता के हृदयों में।

Book by Varavara Rao:

वरवर राव
वरवरा राव (जन्म 3 नवंबर 1940) एक कम्युनिस्ट, कार्यकर्ता, प्रसिद्ध कवि, पत्रकार, साहित्यिक आलोचक, और तेलंगाना , भारत के सार्वजनिक वक्ता हैं। वह 1957 से कविता लिख ​​रहे हैं। उन्हें तेलुगू साहित्य में सर्वश्रेष्ठ मार्क्सवादी आलोचकों में से एक माना जाता है और वे लगभग 40 वर्षों से स्नातक और स्नातक छात्रों को तेलुगु साहित्य पढ़ा रहे हैं।