‘Kavi Is Tarah Kyon Hansa’, a poem by Nirmal Gupt
वह गहरी उदासी के बीच
अनायास निहायत बेहूदा तरीक़े से हँस पड़ा
फिर देर तक सोचता रहा
क्या किसी अनहोनी के फ़र्ज़ी अंदेशे पर हँसा या
साइकिल चलाना सीखती बच्ची के
बेसाख़्ता पक्की सड़क पर गिर पड़ने पर हँसा
हँसा इसलिए कि इसकी कोई वजह न थी
एक बात तय है कि
किसी षड्यंत्र के तहत उसने यह न किया होगा
कवि के लिए हँसना या रोना कभी सहज नहीं होता
उदास बने रहना ऐसा ही है
जैसे काग़ज़ पर अक्षरों जैसे चील कौए उड़ाने से पहले
पेन्सिल की नोक को सलीक़े से नोकदार बनाना
लिखने लायक रूपक को बटोर लेना
अनुमान है कि उसका हँसना
घनीभूत अवसाद में महज़ बुदबुदाना रहा होगा
वैसे क़ायदा तो यह था
उसे हँसना ही था तो
भीतर ही भीतर चुपचाप हँस लेता
जैसे अमूमन ग़म, ग़ुस्से या गहन आनंद को
धीरे-धीरे अपने अंदर घोलता है,
जैसे बिना ध्वनि का इस्तेमाल किये
करता हैं संवाद
मंथर गति से बहती हवाओं से
फूल की सुगंध और रंग से
परिंदों की परवाज़ से
कवि होने का यह मतलब नहीं
कुछ भी कर बैठें खुलेआम।
लिखना-लिखाना हो
मुफ़्त में यहाँ-वहाँ से मिली डायरी के पन्नों पर लिखे,
बेहतर यही कि मन ही मन करें यह फ़िज़ूल काम
समझ ले
बेवजह हँसी का फ़लक बड़ा धारदार होता है
इससे कौन कितना आहत हो उठे
यह बात ठीक से कोई नहीं जानता।