यहां निराला विक्षिप्त हो जाते हैं
मुक्तिबोध कंगाली में मर जाते हैं
जॉन एलिया खून थूकते हैं
गोरख पांडे आत्महत्या कर लेते हैं
सर्दी की इक रात में
मजाज़ अकड़ कर मर जाते हैं
मीर जवानी में
तो फ़िराक़ बुढ़ापे में पागल हो जाते हैं
स्वदेश दीपक का क्या
वो तो पागल भी होते हैं
और एक दिन ग़ायब भी हो जाते हैं
अगर अब भी आप सोच रहे हैं
यह कैसी कविता है
तो आप ग़लत सोंच रहे हैं
आपको सोचना चाहिए
कविता कैसी होती है।

भारत भूषण
An adult who never grew.