‘Kavita Mein Kaha Suna’, a poem by Rag Ranjan
अशुभ मुहूर्तों का सबसे बुरा कोप
उस समय की कविता पर पड़ता है
क्योंकि
कविता को तो कभी भी
सुघड़ कुतर्कों के हवाले देकर
संदेह का बंदी बनाया जा सकता है
कविताओं में कहा-सुना कभी माफ़ नहीं होता
कविता समझने की कोशिश करने वाले
ताउम्र प्रेम के परहेज़ से पीड़ित
सभ्य समाज में सम्मान पाते हैं
इतिहास की हर सच्ची कविता
फली है आख़िरकार षडयंत्रों के साये में
कब तक अकेली निहत्थी लड़ेगी कविता
कविता में सब कहने-सुनने लायक़
निःशब्द रह जाएगा एक दिन
कोई कवि शब्द माँगने नहीं आएगा
ना कभी वह पाएगा
उम्मीद – फ़ासला – जल्द लौट आना
जैसे पुकारते हुए शब्द
कितनी विदाएँ हैं जो अनकही रह जाएँगी
कितनी बांझ प्रतीक्षाएँ ठहरी रहेंगी
उनींदी आँखों से अधखुली खिड़कियाँ ताकते हुए
कविता से कंगाल समाज
अपनी विजय का उत्सव मनाएगा उस दिन
जंगल की वीभत्स आवाज़ों के शोर के बीच
उस दिन की आशंका को
थोड़ा-थोड़ा हर पल परे धकेलने के लिए
आओ कविता कहें-सुनें,
जीवन का शुभ रचें।
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